जम्मू-कश्मीर के पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने आतंकवाद के प्रति अब तक का सबसे कड़ा और निर्णायक रुख अपनाया है। भारत ने न सिर्फ पाकिस्तान के खिलाफ कूटनीतिक और सुरक्षा मोर्चे पर कार्रवाई तेज की है, बल्कि अपने यहां रह रहे पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा रद्द कर उन्हें देश छोड़ने का आदेश भी दे दिया। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में सबसे शर्मनाक चेहरा पाकिस्तान का सामने आया, जब उसने अपने ही नागरिकों को देश में वापस एंट्री देने से इनकार कर दिया।
भारत ने अटारी बॉर्डर से पाकिस्तानियों को भेजा वापस
भारत सरकार ने पाकिस्तान के नागरिकों को 5 से 7 दिन का समय दिया कि वे अपना सामान समेटकर देश छोड़ दें। निर्धारित समयसीमा पूरी होने पर कई पाकिस्तानी नागरिक अटारी-वाघा बॉर्डर पर पहुंचे। BSF के जवानों ने सीमा तक उन्हें पहुंचाया और भारतीय सीमा के गेट खोलकर उन्हें विदा किया। इसके बाद अटारी बॉर्डर का गेट बंद कर दिया गया। यह पूरी प्रक्रिया शांतिपूर्ण तरीके से पूरी हुई।
पाकिस्तान ने वाघा बॉर्डर का गेट नहीं खोला
लेकिन पाकिस्तान ने अपने ही नागरिकों को स्वीकार करने से मना कर दिया। पाकिस्तानी रेंजर्स ने वाघा सीमा पर गेट नहीं खोला, जिस वजह से 10 से ज्यादा पाकिस्तानी नागरिक बॉर्डर पर फंस गए। पाकिस्तान की सरकार या सेना की तरफ से इस इनकार की कोई स्पष्ट वजह नहीं दी गई।
भारत ने जिम्मेदारी निभाई, लेकिन पाकिस्तान ने खुद अपने ही लोगों को सीमा पार नहीं करने दिया, जिससे वाघा सीमा पर फंसे पाक नागरिकों में गहरा आक्रोश और दुख है।
अपनों से बिछड़ने का दर्द झेल रहे हैं पाकिस्तानी नागरिक
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तानी नागरिक सूरज कुमार ने बताया कि वे अपनी बुजुर्ग मां को हरिद्वार तीर्थयात्रा पर लाए थे। 45 दिन का वीजा था, लेकिन आतंकी हमले के बाद उन्हें भारत छोड़ने के लिए कहा गया। जब वे सुबह 6 बजे वाघा सीमा पर पहुंचे, तो पाक रेंजर्स ने गेट खोलने से मना कर दिया।
एक अन्य पाकिस्तानी नागरिक हर्ष कुमार सुबह 5 बजे से गेट खुलने का इंतजार कर रहे थे, लेकिन उन्हें भी निराशा हाथ लगी। उन्होंने कहा, "हम मानसिक तनाव में हैं। पाकिस्तान को चाहिए कि वह अपने नागरिकों को वापस ले।"
नामरा की कहानी ने भावुक किया सबको
नामरा, एक भारतीय महिला जिसकी शादी पाकिस्तान के एक व्यक्ति से हुई है, अपने पति और बेटी से मिलने के लिए लाहौर जाना चाहती थीं। लेकिन पाकिस्तान ने उसे भी एंट्री नहीं दी। वाघा सीमा पर खड़ी नामरा ने कहा, "मेरा परिवार पाकिस्तान में है, मैं सिर्फ अपने पति और बेटी से मिलना चाहती हूं। पाकिस्तान मुझे अंदर आने दे, यही मेरी गुजारिश है।"
नामरा की आंखों में आंसू थे, और उसकी यह पीड़ा दो देशों के बीच की राजनीति का निर्दोष शिकार बन चुकी आम जनता की भावना को उजागर कर रही थी।
भारत ने वीजा नियमों में किया बदलाव
भारत ने 14 कैटेगरी के वीजा रद्द कर दिए हैं।
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SAARC वीजा वालों को 26 अप्रैल तक
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अन्य 12 कैटेगरी के वीजा धारकों को 27 अप्रैल तक
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मेडिकल वीजा वालों को 29 अप्रैल तक भारत छोड़ने का समय दिया गया था।
अब तक 911 पाकिस्तानी नागरिक भारत छोड़ चुके हैं। भारत ने यह कदम आतंकवाद के खिलाफ एक सख्त संदेश देने के लिए उठाया, जो देश की सुरक्षा नीति में एक नया और निर्णायक बदलाव का संकेत है।
पाकिस्तान की किरकिरी
अपने नागरिकों को एंट्री न देने की घटना ने पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय मंच पर और ज्यादा किरकिरी कर दी है। एक तरफ वह खुद को लोकतंत्र और इस्लामी भाईचारे का संरक्षक बताता है, दूसरी तरफ अपने ही लोगों को सीमा पर बेसहारा छोड़ देता है।
यह रवैया दर्शाता है कि पाकिस्तान की नीति केवल आतंकियों के प्रति नरम है, जबकि आम नागरिकों के हितों को वह आसानी से कुचल देता है।
निष्कर्ष: इंसानियत हार गई, राजनीति जीत गई
भारत ने आतंकी हमले का जवाब नीतिगत और नैतिक तरीके से देने का रास्ता चुना, लेकिन पाकिस्तान की हरकत ने इंसानियत को शर्मसार कर दिया। जो लोग बिना किसी अपराध के सिर्फ दो देशों की खींचतान में फंस गए हैं, उनका दर्द अकल्पनीय है।
अब सवाल ये है — क्या पाकिस्तान अपने नागरिकों को स्वीकार करेगा? क्या दोनों देशों के बीच एक बार फिर नागरिकों की पीड़ा से ऊपर उठकर कोई समाधान निकल पाएगा?